“जब मुनाफा सपना नहीं, हकीकत लगने लगे – तो सावधान हो जाइए!” कुछ स्कीमें इतनी चमकदार होती हैं कि धोखे का एहसास ही नहीं होता। Infinite Beacon ने भी यही चाल चली।
हर महीने मोटा रिटर्न, कम इन्वेस्टमेंट और भरोसे का मुखौटा, ऐसे वादे करके इसने लोगों की उम्मीदों को सहारा दिया, और फिर उन्हीं उम्मीदों को तोड़ डाला। यह सिर्फ एक फर्जी स्कीम नहीं थी, यह एक सिलसिलेवार जाल था जो गांवों से लेकर शहरों तक फैल गया और लाखों लोगों की मेहनत की कमाई निगल गया।
अब यह Ponzi स्कीम बड़े पैमाने पर बेनकाब हो चुकी है। कई शिकायतें SEBI और पुलिस विभागों तक पहुंच चुकी हैं। लोग अपने नुकसान की कहानी सोशल मीडिया पर साझा कर रहे हैं, और कुछ जगहों पर कानूनी कार्रवाई भी शुरू हो चुकी है।
लेकिन अभी भी कुछ लोग अनजान हैं और इस स्कीम में पैसा लगा रहे हैं—क्योंकि पुराने निवेशकों द्वारा दिखाए गए फर्जी मुनाफे और निकासी स्क्रीनशॉट अब भी नए लोगों को गुमराह कर रहे हैं।
Infinite Beacon in Hindi के इस blog में जाने कि किस तरह से इस कंपनी ने एक बड़ा स्केम को अंजाम दिया और आज भे ये कंपनी लगातार लोगो को अपने फैलाये जाल में फसती चली जा रही है।
Infinite Beacon क्या है?
Infinite Beacon ने खुद को एक इन्वेस्टमेंट कंपनी के रूप में पेश किया जो हर निवेशक को फिक्स्ड मंथली रिटर्न देने का वादा करती थी। कंपनी का दावा था कि वह SEBI-रजिस्टर्ड ट्रेडिंग प्लेटफॉर्म TRDEZ से जुड़ी हुई है और उसका इंटरनेशनल लेवल पर नेटवर्क है।
असल में Infinite Beacon कई नामों में काम कर रही थी जैसे IF Global, Sum Capital, Yash.com और JSVC। नाम बदलने का मकसद सिर्फ एक था—लोगों को भ्रमित करना ताकि कोई भी पुराने स्कैम्स को पहचान न सके।
कंपनी ने referral schemes और बड़े-बड़े पार्टनरशिप के दावों के जरिये निवेशकों को अपनी ओर खींचा।
शुरुआत में सब कुछ भरोसेमंद लग रहा था, लेकिन जैसे ही लोग पैसे निकालने की कोशिश करते, withdrawals रोक दिए गए और कंपनी ने चुप्पी साध ली।
Infinite Beacon ने कैसे किया स्कैम?
कंपनी ने अपने स्कैम को बहुत रणनीतिक तरीके से चलाया। शुरुआत में एजेंट्स छोटे शहरों और कस्बों के लोगों को टारगेट करते और उन्हें “रिस्क-फ्री” निवेश का सपना दिखाते। 8-12% मंथली रिटर्न के लालच में लोग जल्दी से पैसा लगाने को तैयार हो जाते।
Referral schemes का इस्तेमाल किया गया ताकि निवेशक खुद ही और लोगों को कंपनी में लाएं। जितने ज्यादा लोग आप लाते, उतना ज्यादा बोनस और कमीशन मिलता। यह मॉडल तेजी से फैलता गया क्योंकि लोग अपने दोस्तों और परिवार को भी जोड़ने लगे।
कंपनी की वेबसाइट और ऐप्स इतने प्रोफेशनल बनाए गए कि निवेशकों को सब असली लगने लगा। डैशबोर्ड पर हर दिन बढ़ता हुआ मुनाफा दिखाया जाता, जिससे उनका भरोसा और मजबूत होता गया।
असल में यह पूरी तरह Ponzi Scheme थी। पुराने निवेशकों को payout देने के लिए नए निवेशकों का पैसा इस्तेमाल किया जाता था।
जैसे-जैसे निवेशकों की संख्या बढ़ती गई और withdrawals आने लगे, कंपनी ने तकनीकी बहाने देने शुरू कर दिए—कभी सिस्टम अपग्रेड की बात कही गई, कभी बैंकिंग इश्यू का हवाला दिया। अंत में withdrawals पूरी तरह बंद कर दिए गए।
Agast Mishra और Infinite Beacon
Infinite Beacon घोटाले के पीछे दो प्रमुख नाम सामने आए—Agast Mishra और Navnath Jagannath Awatade। इन दोनों ने न केवल इस स्कीम की नींव रखी, बल्कि इसके संचालन और बचाव में भी अहम भूमिका निभाई।
Agast Mishra, जिसे इस स्कैम का असली योजनाकार माना जाता है, पहले से फाइनेंशियल सेक्टर में सक्रिय था। उसने TRDEZ नामक SEBI-रजिस्टर्ड ब्रोकरेज कंपनी में डायरेक्टर के रूप में काम किया था।
इसी वजह से Infinite Beacon ने TRDEZ का नाम बार-बार लेकर निवेशकों को यकीन दिलाया कि वे एक रेगुलेटेड प्लेटफॉर्म के साथ जुड़े हैं।
Mishra ने इस स्कैम को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर फैलाने की योजना बनाई और शिकायतें बढ़ते ही वह भारत छोड़कर दुबई भाग गया, जिससे साफ हुआ कि वह गिरफ्तारी से बचना चाहता था।
Navnath Jagannath Awatade, इस स्कैम का फ्रंट फेस था। वह कंपनी के रोजमर्रा के कामकाज में शामिल था और निवेशकों के सवाल उठाने पर डराने-धमकाने की रणनीति अपनाता था।
उसने हमे A Digital Blogger YouTube चैनल पर Infinite Beacon की स्कीम का पर्दाफाश करने पर ₹25 लाख तक के कानूनी नोटिस भेजा और साइबर क्राइम शिकायतों व कॉपीराइट क्लेम्स का सहारा लेकर उनके कंटेंट हटवाने की कोशिश की।
Trdez Stock Broking Financial Ltd. की डायरेक्टर लिस्ट कुछ इस प्रकार है:

Infinite Beacon के डायरेक्टर कि लिस्ट में भी तीन नाम ऐसे है जो Trdez के साथ भे जुड़े हुए है। इससे ये साबित होता है की Infinite Beacon और त्र्देज़ कंपनी आपस में जुडी है और निवेशको को गुमराह करने के लिए सेबी रजिस्ट्रेशन का फायदा उठा रही है।

दोनों की जुगलबंदी ने स्कैम को इतना मजबूत बना दिया कि शुरुआती महीनों में कोई भी शक नहीं कर पाया। खतरे के वक्त कंपनी का नाम और ब्रांड बदल दिया जाता, वेबसाइट्स गायब कर दी जातीं और निवेशकों को नई स्कीम में फंसा लिया जाता। Mishra ने जहां योजनाएं बनाईं, वहीं Awatade ने विरोधियों और निवेशकों को काबू में रखने का काम किया।
निवेश प्रक्रिया और असली अनुभव – कैसे फँसाए गए लोग?
Infinite Beacon में निवेश करना बाहर से देखने में बेहद आसान और प्रोफेशनल लगता था। कंपनी के एजेंट्स लोगों को यह भरोसा दिलाते कि पैसा पूरी तरह सुरक्षित है और withdrawals कभी रोके नहीं जाएंगे।
लेकिन अंदर की हकीकत कुछ और ही थी।
- शुरुआत में सब कुछ “सही” लगता था
निवेशक को एक लिंक या मोबाइल ऐप पर रजिस्ट्रेशन करने के लिए कहा जाता था। ज्यादा वक्त खराब न हो, इसके लिए एजेंट खुद ही फॉर्म भर देते और जरूरी दस्तावेज जैसे आधार या पैन कार्ड कई बार माँगे ही नहीं जाते। इस प्रक्रिया को इतना स्मूथ बनाया गया कि निवेशक सोच भी न पाए कि इसमें कोई धोखा हो सकता है।
इसके बाद, निवेशक को एक ऑनलाइन डैशबोर्ड दिया जाता था। यहाँ पर उनका निवेश और उस पर रोजाना या महीने का वर्चुअल मुनाफा दिखता था। इस डैशबोर्ड को इस तरह डिज़ाइन किया गया था कि हर कोई यही माने कि कंपनी पारदर्शी है और उनका पैसा “काम” कर रहा है। - पैसा कहाँ जाता था?
एजेंट निवेशकों को बताते कि पैसा सीधे Infinite Beacon के बताए गए बैंक खातों में भेजा जाए। कई बार ये खाते अलग-अलग नामों जैसे Sispay TFS या IB Prop Desk पर होते। निवेशक समझते कि पैसा किसी ट्रेडिंग अकाउंट में जा रहा है, लेकिन असल में वह सीधे कंपनी के कब्जे में चला जाता। - Withdrawal की सच्चाई
शुरुआत में जब कोई निवेशक अपना पैसा निकालना चाहता, तो उसे एक छोटी रकम दी जाती। यह सिर्फ भरोसा दिलाने के लिए किया जाता था ताकि वह और पैसे लगाए और दूसरों को भी जोड़े। लेकिन जैसे-जैसे निवेशकों की संख्या और पैसा बढ़ने लगा, withdrawals में अड़चनें आनी शुरू हो गईं।
-कभी कहा गया कि “सिस्टम अपग्रेड” हो रहा है।
-कभी कहा गया कि “बैंकिंग इश्यू” है।
-और कई बार अचानक पॉलिसी बदलने का हवाला दे दिया गया।
अंत में हजारों लोगों के लाखों रुपये बस उस डैशबोर्ड पर दिखते रहे, लेकिन हकीकत में उनका बैंक बैलेंस शून्य हो गया। - Referral का जाल
कंपनी का असली खेल referral स्कीम था। निवेशक से कहा जाता कि जितने ज्यादा लोग वह जोड़ेगा, उतना ज्यादा बोनस और कमीशन मिलेगा। कई लोग इस लालच में अपने रिश्तेदारों और दोस्तों को भी जोड़ते गए। नतीजा यह हुआ कि एक-एक परिवार की पूरी जमा पूंजी Infinite Beacon के नकली वादों में फँस गई।
स्कैम का खुलासा
Infinite Beacon ने एक ऐसा महीन और सुनियोजित जाल बिछाया था कि प्रोफेशनल वेबसाइट, चमकदार मोबाइल ऐप और हर दिन बढ़ते डैशबोर्ड बैलेंस ने हजारों निवेशकों का भरोसा जीत लिया। लेकिन हर झूठ की एक उम्र होती है। सच तब सामने आने लगा जब कुछ साहसी डिजिटल क्रिएटर्स और यूट्यूबर्स ने सवाल उठाने शुरू किए।
सबसे बड़ा खुलासा, हमने अपने YouTube चैनल, A Digital Blogger पर किया।
हमने खुद थोड़ी रकम निवेश कर सिस्टम की पड़ताल की। शुरुआत में सब कुछ सामान्य दिखा—डैशबोर्ड पर मुनाफा जुड़ता रहा और एजेंट्स ने withdrawals के वादे किए।
लेकिन जैसे ही हमने पैसे निकालने की कोशिश की, कंपनी ने “सर्वर इश्यू”, “पॉलिसी अपग्रेड” और “बैंकिंग डिले” जैसे बहाने बनाने शुरू कर दिए। डैशबोर्ड पर “profit credited” के संदेश आते रहे, लेकिन असली पैसे कभी बैंक अकाउंट तक नहीं पहुँचे।
जांच में सामने आया कि TRDEZ, IF Global, Sum Capital, JSVC और Yash.com जैसे जुड़े हुए ब्रांड्स महज भ्रम का हिस्सा थे।
Rise AMC जैसी फर्जी पार्टनरशिप्स का प्रचार कर निवेशकों को यकीन दिलाया गया कि वे किसी बड़ी और रेगुलेटेड संस्था के साथ हैं, लेकिन इन दावों का कोई वैध रिकॉर्ड नहीं मिला।
जैसे-जैसे खुलासे सोशल मीडिया पर फैलने लगे, मास्टरमाइंड्स ने इन्हें दबाने की हर मुमकिन कोशिश की। हमे ₹25 लाख तक के लीगल नोटिस भेजे गए और कई यूट्यूबर्स को DMCA और साइबर क्राइम FIR की धमकियाँ दी गईं।
उनका मकसद था डर का माहौल बनाकर कंटेंट हटवाना। लेकिन इन डिजिटल वॉरियर्स ने और ज्यादा सबूत सामने लाकर Infinite Beacon का पर्दाफाश कर दिया।
सच्चाई सामने आते ही असली पीड़ितों की कहानियाँ वायरल होने लगीं। कई लोगों ने सोशल मीडिया पर बताया कि कैसे इस स्कैम ने उनकी जीवनभर की बचत, रिश्ते और मानसिक शांति तक छीन ली। ब्लॉगर्स और मीडिया की बदौलत Infinite Beacon का नाम अब भरोसे का नहीं, बल्कि धोखे का पर्याय बन गया।
धोखाधड़ी का अगला चरण: क्रिप्टो में पेआउट
जैसे-जैसे Infinite Beacon स्कैम का जाल फैलता गया और हजारों निवेशकों का पैसा फंसता गया, कंपनी पर सवाल उठने लगे। withdrawal की डिमांड बढ़ी तो मास्टरमाइंड्स ने एक नया पैंतरा खेला—पैसों के लेन-देन को पारंपरिक बैंकिंग चैनलों से हटाकर Cryptocurrency में शिफ्ट कर दिया।

- बैंकिंग से क्रिप्टो की चालाकी
पहले तक निवेशक सीधे कंपनी के बैंक अकाउंट में रुपये ट्रांसफर करते थे और withdrawal भी बैंक अकाउंट में ही मिलता था। लेकिन जब regulatory agencies (जैसे SEBI और ED) का शिकंजा कसने लगा और निवेशकों ने सोशल मीडिया पर हंगामा मचाया, Infinite Beacon ने payout के लिए USDT/TRC20 जैसे क्रिप्टो वॉलेट्स का इस्तेमाल शुरू कर दिया।
अब निवेशकों को कहा गया:
-अपना payout लेने के लिए crypto वॉलेट की डिटेल दें।
-क्रिप्टो ट्रांजेक्शन में किसी भी गलती या फेल होने पर सारी जिम्मेदारी आपकी होगी।
यह बदलाव कंपनी की उस बड़ी साजिश का हिस्सा था जिसमें वे हर तरह की जवाबदेही से बचना चाहते थे। - Consent Forms और नई शर्तें
Infinite Beacon ने अपने पुराने निवेशकों को एक नया consent form साइन करवाया। इसमें साफ लिखा था:
-Crypto Payout में कोई दिक्कत आए तो कंपनी जिम्मेदार नहीं होगी।
-क्रिप्टो पेमेंट irreversible होती है, यानी अगर पैसा गलत एड्रेस पर चला गया तो उसे वापस लाना संभव नहीं है।
नतीजा यह हुआ कि निवेशक डर के मारे payout के लिए crypto वॉलेट बना तो रहे थे, लेकिन उन्हें पता था कि अगर ट्रांजेक्शन फेल हुआ तो पैसा वापस नहीं आएगा।
क्रिप्टो में Payout क्यों था खतरनाक?
भारत में cryptocurrency अभी भी रेगुलेटेड नहीं है। ना SEBI और ना ही किसी दूसरी सरकारी एजेंसी के पास इतना पुख्ता सिस्टम है कि वह crypto घोटालों में निवेशकों की मदद कर सके।
- क्रिप्टो पेमेंट का कोई ट्रेसिंग मैकेनिज्म नहीं है।
- गलत ट्रांसफर होने पर पैसा पूरी तरह खो सकता है।
- इस रास्ते से Infinite Beacon के मास्टरमाइंड्स ने आसानी से पैसे विदेश भेज दिए और कानून से बच निकले।
आखिरी उम्मीद भी टूटी
क्रिप्टो payout की आड़ में Infinite Beacon ने निवेशकों की बची-खुची उम्मीद भी खत्म कर दी। जिन्होंने पहले INR में पैसे लौटने का इंतजार किया था, वे अब crypto payout के डर और अनिश्चितता के बीच फंस गए।
Infinite Beacon की कानूनी धमकियाँ हर किसी को डरा नहीं सकीं। हम अपनी research पर डटे रहे:
- अपने रिसर्च और दस्तावेज़ जारी किए।
- पीड़ित निवेशकों की कहानियाँ शेयर कीं।
- नए लोगों को इस जाल से बचाने के लिए कंटेंट बनाना जारी रखा।
यही वजह है कि Infinite Beacon घोटाले की परतें धीरे-धीरे खुलीं और लोग इसके पीछे के मास्टरमाइंड्स को पहचानने लगे।
सरकारी ऐक्शन और नियामक चूक
Infinite Beacon घोटाले ने हजारों लोगों की जिंदगी को तहस-नहस कर दिया। जब निवेशक और मीडिया लगातार शोर मचाने लगे, तो उम्मीद थी कि सरकार और रेगुलेटरी एजेंसियाँ सख्त कार्रवाई करेंगी। लेकिन हकीकत ने पीड़ितों को और निराश कर दिया।
शिकायतों का अंबार, लेकिन नतीजा नहीं
हजारों निवेशकों ने अपनी मेहनत की कमाई फँसने के बाद SEBI (भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड), Enforcement Directorate (ED) और साइबर क्राइम सेल में शिकायतें दर्ज कराईं।
- कुछ ने ऑनलाइन पोर्टल्स का सहारा लिया, तो कई लोग खुद ऑफिस जाकर केस की जानकारी दी।
- शुरुआत में लगा कि सरकार मामले को गंभीरता से ले रही है।
लेकिन जल्द ही सच्चाई सामने आ गई:
- अधिकतर शिकायतें या तो फाइलों में दबा दी गईं या केवल acknowledgment देकर छोड़ दी गईं।
- कुछ मामलों में जांच शुरू हुई भी, लेकिन बाद में administrative closure के नाम पर रोक दी गई।
क्यों नाकाम रहीं एजेंसियाँ?
- SEBI और BSE जैसी संस्थाओं ने शिकायतों को महज़ फॉर्मेलिटी की तरह निपटाया।
- कई शिकायतकर्ताओं को सिर्फ एक ईमेल या मैसेज मिला कि “मामला दर्ज कर लिया गया है।”
- Enforcement Directorate (ED) ने भी जांच की बात कही, लेकिन निवेशकों के लिए कोई ठोस राहत नहीं आई।
सरकारी सिस्टम की धीमी कार्रवाई ने यह साफ कर या कि ऐसे घोटालों से बचाव का सबसे अच्छा तरीका है खुद की सतर्कता।
- ग्रुप कम्प्लेंट, मीडिया कवरेज और सोशल प्रेशर ही ऐसे मामलों में सबसे बड़ा हथियार बन सकते हैं।
- सिस्टम पर आँख मूंदकर भरोसा करना कई बार भारी पड़ सकता है।
जैसे ही withdrawals रुकने लगे और डैशबोर्ड पर अकाउंट “फ्रीज़” दिखने लगा, निवेशकों को अहसास हुआ कि वे ठगे जा चुके हैं।
- कई परिवारों में तनाव इतना बढ़ गया कि रिश्तों में दरारें पड़ गईं।
- कुछ लोग मानसिक दबाव में बीमार पड़ गए, तो कुछ ने आत्महत्या तक कर ली।
शिकायतों के बाद भी राहत नहीं
जिन लोगों ने साहस करके SEBI, साइबर क्राइम या ED में शिकायत दर्ज कराई, उन्हें भी सिर्फ एक acknowledgement मिला।
- महीनों तक कोई ठोस जवाब नहीं आया।
- कई पीड़ितों ने कहा, “अब तो सरकारी संस्थाओं पर भी भरोसा नहीं रहा।”
एक-दूसरे की ताकत बने निवेशक
इस सबके बावजूद कुछ लोग टूटे नहीं। उन्होंने फेसबुक, व्हाट्सएप और टेलीग्राम पर ग्रुप बनाए।
- वहाँ वे एक-दूसरे का हौसला बढ़ाते हैं।
- साथ मिलकर ग्रुप FIR और कलेक्टिव कम्प्लेंट्स दायर कर रहे हैं।
उनका मानना है कि अकेले लड़ना मुश्किल है, लेकिन अगर सब मिलकर आवाज़ उठाएँ तो कंपनी और जिम्मेदार लोगों पर दबाव बनाया जा सकता है।
बड़े सबक और सतर्कता: भविष्य के लिए चेतावनी
Infinite Beacon घोटाले ने यह सिखा दिया कि जल्दी अमीर बनने का वादा करने वाली हर स्कीम सबसे बड़ा खतरा होती है। referral इनकम, flashy डैशबोर्ड और बार-बार बदलते ब्रांड नामों ने हजारों लोगों को अपने जाल में फँसाया। कई निवेशक अपनों के कहने पर इसमें कूद पड़े और अपनी जिंदगी की बचत गंवा बैठे।
सबसे बड़ा सबक यह है कि किसी भी “assured income” प्लान पर आँख मूंदकर भरोसा करना भारी पड़ सकता है। ऐसी स्कीम को जॉइन करने से पहले हमेशा कंपनी की जांच-पड़ताल करें:
- कंपनी SEBI या अन्य सरकारी पोर्टल पर रजिस्टर्ड है या नहीं।
- क्या KYC और payout सिस्टम पारदर्शी हैं।
- Referral के लालच और फर्जी ऐप्स से बचें।
अगर आपका पैसा किसी स्कीम में फँस गया है, तो घबराने के बजाय ठोस कदम उठाएँ:
- सभी सबूत सुरक्षित रखें – ट्रांजेक्शन प्रूफ, स्क्रीनशॉट्स, चैट्स और ईमेल्स को संभालकर रखें।
- शिकायत दर्ज कराएँ – SEBI, साइबर क्राइम सेल और Enforcement Directorate (ED) में जल्दी से जल्दी रिपोर्ट करें।
- ग्रुप में मिलकर कार्रवाई करें – अकेले लड़ने के बजाय पीड़ितों का समूह बनाकर group complaint या group FIR दर्ज कराएँ।
भविष्य में कोई भी कंपनी बड़े-बड़े वादे करे या referral का दबाव डाले तो सतर्क हो जाएँ। सवाल पूछने में हिचकिचाएँ नहीं।
याद रखें: सतर्क रहना और समय रहते दूसरों को जागरूक करना ही सबसे बड़ी सुरक्षा है।
अगर आप भे इस कंपनी के फ्रॉड में फंसे है तो अभी हमारे साथ संपर्क करें! हमारी टीम आपको शिकायत दर्ज करने में और आगे कि करवाई करने में सहयोग।
निष्कर्ष
Infinite Beacon कोई मामूली धोखाधड़ी नहीं थी, बल्कि एक सोची-समझी Ponzi स्कीम थी। इसने प्रोफेशनल वेबसाइट, चमकदार ऐप और गारंटीड इनकम के झांसे से हजारों लोगों को अपने जाल में फँसाया।
मास्टरमाइंड्स ने बार-बार कंपनी का नाम और ब्रांड बदलकर निवेशकों को उलझाया और कानूनी धमकियों के जरिए सच उजागर करने वालों को डराने की कोशिश की।
शुरुआत में referral bonuses और quick profit के वादे किए गए, लेकिन जैसे ही पैसा इकट्ठा हुआ, withdrawals को तकनीकी बहानों के हवाले कर दिया गया। फर्जी KYC, नकली डैशबोर्ड और दिखावटी partnerships का मकसद बस नए निवेशकों को लुभाना था।
सरकारी एजेंसियों की कार्रवाई धीमी रही और आज भी अधिकांश पीड़ितों को ठोस राहत नहीं मिल पाई। सबक यही है कि भरोसा हमेशा अपनी समझदारी और सतर्कता पर रखें—यही सबसे बड़ा सुरक्षा कवच है।